चुनाव, राजनीतिक दल व, मतदाता:-

हमारे प्रदेश में चुनाव सिर्फ सरकारी आयोजन नही होता है देखिये सच्चाई भले ही यही हो कि इसमें मुख्य भागीदारी सिर्फ राजनैतिक दल की होती है लेकिन भईया इसमें भाग लेता है हर वो आदमी जो वोट देने का पात्र हो या फिर वोट दिलाने में सक्षम हो, या फिर छोट भैयवा हो या फिर स्व घोषित समाजसेवी हो,नेता हो,समर्थक हो,फलाने भईया का डाई हार्ड फैन हो। ये तो हो गयी चुनाव में भाग लेने वाले की योग्यता की बात अब चलिये एक नजर उनके ऊपर भर फेर ले जिन्हे कागज में विधायक/ सासंद आदि कहते है और जनमानस के बीच  में माननीय जी,नेता जी और राजनैतिक दल के आफिसियल लेटर पैड पर पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी के नाम से जाना जाता है।
प्रायः हमारे यहाँ चुनाव आयोग के आधिकारिक कागज पर भले ही घोषित प्रत्याशी चुनाव निशान के साथ चुनावी मैदान मे उतरा हो लेकिन असल में चुनाव प्रत्याशी से ज्यादा हम अर्थात समर्थक लड़ाई लड़कर डटे रहते है।
यहा चुनावी लड़ाई भी कई स्तर पर लड़ी जाती है जैसे कि
कही विचारधारा की लड़ाई है तो कही स्थानीय मुद्दे पर कही के लोगो के लिये पहले प्रदेश है तो कोई सिर्फ व्यक्तिगत हित को ध्यान मे रखकर मैदान में आता है। कोई किसी का बड़ा समर्थक होता है तो कोई पार्टी का पदाधिकारी,किसी के अन्दर भविष्य के नेता बनने की उम्मीद है तो कोई बड़ा नेता विपक्ष का तो कोई सत्तासीन का अनुयायी।
इतने बड़े आयोजन का सर्व पुज्य होता है "मतदाता"।
मतदाता के आस पास चुनाव के दिन तक गणेश परिक्रमा चलनी तो तय होती है जिसके कारण मतदाता भी मद में फूलने लगता है। उसे अपने होने का अह्सास इतना हो जाता है कि चुनावी जुमले सुनने से पहले ही व नेताओ की भक्तिभाव में डूबने लगता है। जब तक उसे सच्चाई का अनुमान होता है तब तक तो चुनाव के परिणाम के आने का अवसर आ जाता है। इसी तरह हर पंचवर्षीय योजना में वो कभी डूबता है तो कभी गोता लगाता है। कुछ गोता लगाते लगाते होशियार होने का नाटक करते है तो कुछ इसी असफल प्रयास में निरंतर लगे रहते है।
कभी जाति तो कभी समाज कभी पसन्द का नेता तो कभी सत्ता लहर में मदहोश होकर अपनी कीमत को भूलते रहते है। कई साल के अंतराल पर अगर कभी अंतरात्मा जागती है तो तब तक निर्णय करने की शक्ति चली जाती है या कहिये ताकत ही बँट जाती है।
इन सबके दौड़ के बाद कही सुदूर अपनी मंजिल की तलाश में निरंतर चलता रहता है "विकाश"
हर बार चुनाव में कोई जीत कर जाता है तो कोई हार कर जाता है लेकिन प्रत्येक चुनाव में एक घटना हर बार घटती है वो यह है कि हर बार सरेआम बीच बजारो में,नुक्कड़ में, रैलियो में, पार्टी के चुनाव दफ्तरों में, निर्मोही नेताओ के वादो में, चुनावी घोषणा पत्रों में, आदि में सिर्फ व सिर्फ मतदाता ही ठगा जाता है मतदाता ही लूटा जाता है.......
- सौरभ श्रीनेत

Write a comment ...