कन्यादान

#कन्यादान

चारो तरफ भागदौड़ है कोई दवा का पर्चा लिये भागा जा रहा है तो कोई पूछताछ काउंटर खोजते हुए पूछताछ कर रहा है,तभी एंबुलेंस आ गयी है! भाई गेट के पास किसकी मोटरसाइकिल खड़ी है हटाओ जल्दी,सून सब रहे है लेकिन बोल कोई नही रहा।

आज फिर से नाक कान गला वाले डाक्टर नदारद है, फिजीशियन साहब के कमरा नं 309 में लम्बी कतार में खड़े लोग,उसके बगल में वही कोने में जिला सरकारी अस्पताल के महिला आपातकालीन वार्ड 24×7 के गेट के ठीक बगल दिवाल के सटी हुई लोहे के बेंच पर बैठा हुआ बेबस आदमी के भाँति टकटकी निगाहो से आपरेशन कक्ष की ओर निगाहे गड़ाये बैठा है कुछ पल मे ही बनने वाला पिता, पीड़ित पत्नी का पति किसी का बेटा, भाई, मामा, चाचा आदि जो कि एक पुरूष है।

आज अस्पताल का सरकारी पंखा व बाहर से आती हुई प्राकृतिक हवा दोनो उस पुरूष के माथे के पसीना को सुखाने मे असमर्थ है।

कँधे पर गमछा है लेकिन परवाह नही,भुख लगी है लेकिन फिक्र नही,पाव के चप्पल भी बता रहे है कि अस्पताल की अनगिनत चक्कर के बाद आज हो सके यह चक्कर पूर्ण हो जाये।

रामदास कौन है यहाँ?

हाँ मेडम जी हमही है। सब ठीक तो है ना?

अन्दर आओ, और हाँ कसम खाओ की उदास नही होगे,

अरे मेडम का भईल?

नही पहले कसम खाओ तब बतायेंगे,

मैडम सब ठीक है ना,

(टोकते हुये) अरे काहे घुमा रही हो पुनम बता काहे न देती,

तुम पिता बना गये हो, अभी अभी लक्ष्मी का जन्म हुआ है।

का सही मे मेडम एक बार मुहँ देखी त केकरे पे गईल बा।

अभी नही कुछ देर रूको नाड़ी कटने दो तब देखना।

आज रामदास को दुनिया मे आने के उद्देश्य का आभास हो रहा है, लोक, समाज ,परिवार की परवाह नही बस अपने बच्ची व पत्नी की एक झलक पाने के लिये बेचैन रामदास आखे गड़ाये खड़ा है।

दाई के बुलाने पर अन्दर गया फूल सी बिटिया देखने लेकिन छूने से डरता है अपने कठोर हाथो से बिटिया को बचाता है दूर से ही देख कर खुश है,उदास है कोई तो उसकी पत्नी आखो मे आँसु है पहली संतान हुई वो भी लड़की। सासु अम्मा क्या कहेगी, बाबूजी खुश होगे की नही हाय रे मै अभागन हूँ पहली संतान के रूप मे अपने परिवार को एक कुल का दीपक एक बेटा नही दे पायी। सब सोचे जा रही है अपनी छोड़ सबकी फिक्र है माँ है न,अपना कहा सोचती है।

रामदास खुश है,दवाई का झोला थामे पत्नी को लिये बच्चे सहित घर जाने की उत्सुकता मे किराये के लिए आज गाड़ी वाले से कोई झिकझिक भी नही,आज सब मंजूर है उसे बाप जो बना है एक बेटी का।

घर के आंगन मे जो सोहर होने वाला था वो नही होगा चटाई जो बिछाई गयी थी अम्मा के ईशारे पर लपेट के टाँण पर रख दी गयी है, सउरी के लिये महरिन कमरा तैयार करके दुआरे बैठी है।

गाँव का दृश्य है कुल के दीपक के आने की उम्मीद थी,लेकिन बेटा नही जन्मा इसका दुख अम्मा(दादी ) को ज्यादा है बस बाकि सब ठीक है सबकी तरह अपने को अभागिन समझ रही बुढ़ी को क्या पता बेटा-बेटी में कोई भेद नही कुल का दीपक तो हमारे दिये गये संस्कार व शिक्षा से कोई भी बन सकता है बेटा के ही खोपड़ी पर भगवान लिख कर थोड़े भेजते है।

बिटिया बड़ी हुई है साथ ही साथ बढ़ी है पिता के माथे की लकीर,सीकन और जिम्मेदारी भी जो की लक्ष्मी के जन्म से ही कम होने से रही।

अब हर हिसाब मे लक्ष्मी की शादी के खर्च को जरूर जोड़ता। रामदास की पत्नी के पास सोना नही है इसीलिए हमेशा रामदास को कोसती रहती है कि कुछ बनवाये होते तो आज सोचना नही पड़ता।

अभी बिटिया दस साल की हो गयी है रामदास के पास अब एक बेटा भी है लेकिन चिंता लक्ष्मी की ज्यादा है।

ऐ जी देखो स्कूल मे प्रोजेक्ट बनाना होता है बिटिया को काहे ना एक स्क्रीनटच फोन लेते आते हो। श्रीमती की बातो को सुनकर रामदास हामी भरते हुये बजार जाकर बढ़िया ब्रांड जो उसे नही पता खाश लोगो की राय लेकर फोन खरीद कर लाता है।

लव यू पापा आप हमारा कितना ध्यान रखते है कह कर बिटिया गले लग जाती।

रामदास की आखो मे आँसु भर जाता है की एक दिन ऐसे ही गले लग कर बिदा होगी मेरी लक्ष्मी,मेरी किस्मत मेरी बिटिया,मेरी लाडो।

सवेरे शाम गुड़ा गणित में लगा रहता है। घर आये शादी के तमाम निमंत्रण में अपने सामर्थ के अनुसार यह सोच कर न्योता देता है कि लक्ष्मी की शादी में सब वापस आयेगा।

अम्मा पुराने गहने बेच के कुछ रूपया बैक मे लक्ष्मी के नाम पर फिक्स करवा दे क्या ? यह सवाल मन मे आता है लेकिन पूछने से कतराता है।

पिता की चिंता के साथ ही बिटिया और बड़ी हो गयी है विज्ञान वर्ग से इण्टर पास हो गयी।अब आगे की पढ़ाई के लिये शहर जाना है। रामदास के पूरे गाँव मे कोई बिटिया जिले के मुख्यालय तक नही गयी लक्ष्मी को तो लखनऊ, दिल्ली,कानपुर,बनारस जाना था।

अम्मा का मुह बना है , मन ही मन बुदबुदाये जा रही कह रहे थी कि ऐतनो ना पढाओ,फलाने की सुगनी एमे-वमे करके बिहाय गयी है , ललचनवा के मुढ़ी इण्टर पास करके चौका बर्तन सीख रही है और तुम अपने बिटिया को कलेक्टर,डाक्टर बनावे खातिर मरा जा रहे हो।हमार नाय सुनबो तो पचतहियो,शहरे में कुछ ऊँच-नीच हो जायी तो मुह न देखाई पईबो।

घर मे रोना धोना मचा है अम्मा अलग ही गला फाड़े जा रही है बिटिया के घर के बाहर भेजना ठीक नही है लोक-समाज घर-जवार सब का कहेगा।

रामदास मुर्ती बनकर चौखट पर खड़ा है एक बार बाहर की तरफ बैठी अपनी माँ को देखता है तो चौखट के अन्दर खड़ी अपनी पत्नी को देखता है फिर लक्ष्मी के रोने की आवाज को सुनता तो दिवाल पर टगे स्वर्गीय बाबू जी की तस्वीर देखता।

परिवारिक कोलाहल के बीच से निकल सुर्ती मलते हुये चौराहे की तरफ निकल जाता है जहाँ चाय की चुश्की से उसके हर मुश्किल का हल निकलता है।चाय की गुमटी पर चर्चा करते हुये उसे कॉलेज, विश्वविद्यालय की लम्बी सूची मिल जाती है,बुजुर्गो से शहर में पढने वाली लड़किया का विवरण भी लेकिन वहाँ बैठे हुए किसी व्यक्ति ने अपनी बेटी को बाहर नही भेजा,बस सब ज्ञान दिये जा रहे थे, बेटियाँ अब सेना मे है,डाक्टर है,अन्तरिक्ष में है यहा है वहा है ,ये पोस्टिंग वो पोस्टिंग अपना घर छोड़कर सबका बताये जा रहे।

रामदास जोश में है घर आता है बैंक पासबुक लेकर चुपचाप बैंक निकल जाता है जीवन की गाढ़ी कमाई जो बिटिया की शादी के लिये जमा कर रहा था उसमे से कुछ रकम निकाल कर घर लाता है।समझदार बिटिया के हाथ में रखते हुए बाहर जाकर पढ़ने के लिये हामी भरता है।जो हम नही कर पाये हमारी बिटिया करेगी।

कान्वेंट के बच्चो के वाह्टसैप ग्रुप "Morden Youth" पर लक्ष्मी एक मैसेज करती है, HI,guy's my father allowed me, Hurreyy!!!

बिटिया शहर गयी है पढ़ने,अपने बधे पंख को खोलने,किस्मत को निखारने,अपने पिता के स्वपन को सकार करने ऐसा रामदास को हर क्षण लगता है।

एक वर्ष बीतने को है छुट्टी के दिन में बिटिया घर आयी है, रामदास सब्जी,राशन से घर को भरने में आतुर है, श्रीमती जी छौका की दाल,मिस्सी रोटी,रबड़ी बनाने मे लगी है बिटिया को कोई कमी न हो जाये पूरा ध्यान रखे पड़ी है ,परिवार इस वर्ष में भले ही रूखा सुखा ही खाया हो।छोटा भाई भी खुश है कि दीदी के आने के बहाने कुछ अच्छा खाने को मिल तो रहा है।

रामदास आज बहुत खुश है। गदगद मन से जा पहुँचा फिर से उसी चाय की गुमटी पर जहाँ पर बैठ कर मिट्टी के कुल्हड़ को चूम कर एक कुल्हण चाय से उसे साहस,हिम्मत प्राप्त हुआ था, जिसके कारण अपने फूल जैसी बेटी को परिवार से दूर किसी अनजान शहर में शिक्षा हेतु भेजने का निर्णय पुरूष प्रधान सोच के लोगो के बीच में बैठ कर लिया था।जैसे जैसे चाय की घूट गले की नीचे उतर रही है रामदास के हृदय मे खुशी का अनजान सा शोर ऊठने लगा।

सहसा बोल ऊठा ये चाचा हमार बिटिया नाम रौशन करेगी। शहर भेज कर मैने बहुत बड़ा काम किया है डाक्टर बनेगी,अपने गाँव मे बड़ा अस्पताल खोलेगी देख लेना,कमा कर जब हमारी लक्ष्मी आयेगी तो खूब धूम धाम से पूरी बिरादरी के सामने कन्यादान करने का सौभाग्य मिलेगा मैं अभागा एक डाक्टर का बाप , मेरी किस्मत आदि आदि रामदास आज बोले जा रहा सब एकटक उसकी ओर आँखे गड़ाये देखे जा रहे है हमेशा चूप रहने वाला रामदास आज वो नही है जो पहले था।

गुमटी पर बैठा अधेड़ उम्र का एक बुजुर्ग उठा अखबार को मोड़ते हुये बोल पड़ा " हे रामदासवा ऊड़ मत गोड़ उतने पसारे के चाही जेतना चदरवा होय" फलवना कै बिटिया कलेक्टर बने गयी रही वही से भाग गई एक गैर जाति के लड़का के साथ पेपरवा में पढ़ लेव। पडोस के गाँवन की रचनवा अरे झिनकु कै पोती हो ऊहो गयी रही इन्जीनियर बने का भईल उहवें से एक लड़का के साथे बिहाय कै संदेशा घरे पठाय दिहैस।अबहिन समय बा लगाम लगा लेव जमाना बहुत गड़बड़ हो रहल बा कब का होय जाय के जानत हौ, एक बार इज्जत चली गयी तो फिर करत रहया कन्यादान सपनवै मय।"

राम राम सबन कै अब हम चलत हयी पतोहू राह देखत होई हमार।

रामदास दंग रह गया जवाब देना चाह रहा था आवाज नही निकल रही थी चाय की घूँट उसकी आवाज को निकलने नही दे रही थी। एक ही पल मे कोई उसके हृदय को झकझोर गया।उसके शीशमहल पर कोई पहाड़ गिरा गया उसका साहस अब डर के रूप में बदल गया। क्योकि वह भी तो आखिर मे एक लड़की का पिता जो है। लड़खड़ाते हुए ऊठा घर की तरफ बढ़ गया सबकी नजर उसके ओझल होने तक उस पर बनी रही।

शहर में जैसे-जैसे बेटी के कंधों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ते जा रहा था गांव में उसके बाप के सर पर जिम्मेदारियों का बोझ और खतरे की घंटी की सुगबुगाहट भी बढ़ते जा रही थी। पर बाप तो बाप ज़माना जितना कुछ कहे अपनी आंखों से अपनी बेटी को गलत तो नहीं देख सकता।

बिटिया की बढ़ती जिम्मेदारी और बाप की बढ़ती चिंताओं में बिटिया की पढ़ाई के 5 साल कब गुजरे मानो कैलेंडर में कोई हफ्ता आ के लौट गया हो ।

आज 5 वर्ष लगभग हो गये है बिटिया की पढ़ाई के लिये समय समय पर रामदास रूपये तो कभी राशन भिजवाया करता। कुछ खेत भी बिक गये छोटे बेटे की पढ़ाई का भार भी माथे पर बढ़ता जा रहा था चेहरे पर झुर्रियों के साथ साथ चिन्ता की लकीर भी बढ़ती जा रही थी।

आज घर में रिश्तेदार की भीड़ है सभी अपने अपने कामो मे व्यस्त है टूटी व दरारे पड़ी दीवारे भी आज सजी हुई है, तमाम रश्मो मे सरीख होते होते रामदास थक कर खाट पर लेट गया है।

आज विवाह है लक्ष्मी का पर लक्ष्मी कही दिखाई नही दे रही। लक्ष्मी की राह देखते-देखते रामदास का हृदय बैठा जा रहा है।वर्षो पहले चाय की गुमटी पर एक वृद्ध की बातो को याद करते हुए आँखो से आश्रु बहते जा रहे है,पसीने से भीगे तन पर हड्डियाँ ऊभर ऊभर कर बाहर झाक रही है,कमजोर आँखो पर चश्मे के मोटे शीशे के पीछे उसकी आँखो को ये संसार समझने मे नाकाम है। तरह तरह के विचार मन मे उछाल मार रहे है। आज फिर से समाज,वर्ग,जाति,बिरादरी के सामने जाने से कतराते रामदास को अपने वर्षो पहले बिटिया को सुदूर,अनजान शहर में पढ़ाई हेतु भेजने के निर्णय को सोच कर रोये जा रहा है। अम्मा के लाख मना करने पर, लोगो के हजारो टिप्पणियों को दरकिनार कर लिये निर्णय को याद कर एकान्त में पसीजता रामदास।आज तो पत्रकार की भी भीड़ भी जमा है रामदास के पढ़ाकु बिटिया की शादी को कवरेज देने के लिये ये वही लोग है जो वर्षो से स्वयं से विवाह के लिये वर ढूंढने वाली कुछ लड़कियों की खबर बनाकर कैसे बाप की इज्जत को नीलाम करने को आतुर रहते है। आज उस पुरूष प्रधान समाज के ठेकेदार भी रामदास के घर लक्ष्मी के विवाह को देखने के लिये आये है जो कभी रामदास को लड़कियों को काबू मै करने की चेतावनी दिया करते थे। सब है बस लक्ष्मी की कमी है वही नही दिख रही उसको नजरो के सामने ना पाकर रामदास आज फिर असहाय है। इस परिस्थिति में न पत्नी साथ है न ही उसका लड़का रामदास आज के इस सामाजिक संग्राम में अकेले है।

आचानक पत्नी के बार बार जगाने पर हड़बड़ाहट में उठ कर बैठे रामदास के कानो मे आवाज गूँजती है " ऐ जी उठिये पंडीत जी गला फाड़े बुला रहे है उठिए, रामदास फिर भी बेसुध है पत्नी ने झकझोरते हुये बोला हमारी डाक्टर बिटिया मंडप मे आ गयी है और आप सोये जा रहे है, कन्यादान का मुहूर्त होता है जल्दी चलिये।

रामदास अब ऊठा है अपनी लक्ष्मी बिटिया जो अब डाक्टर लक्ष्मी है उसके विवाह के महत्वपूर्ण रस्म को पूर्ण करने। सैकड़ो रामदास का बल लेकर बढ़ा जा रहा है,सभी के ताने बेटियाँ के बारे मे गलत धारणा व भ्रान्तियाँ को खत्म करने बाप होने का सौभाग्य प्राप्त करने,ब्रम्हाण्ड के सबसे बड़े दान को अपने हाथो से करने ,अपने जीवन को आज धन्य करने चल पड़ा है आज वो अपनी लाडली, सुश्री डाक्टर लक्ष्मी पुत्री रामदास का कन्यादान करने।

- सौरभ श्रीनेत

(मेरी कलम की यह लेख समस्त नारी शक्ति को समर्पित है)

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